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DEEPAK 'KULUVI' KI KALAM SE
Wednesday 14 July 2010
मेरी शेर-ओ-शायरी
तकदीर के खेल हैं अजीब-ओ-गरीब
लुट जाता सब कुच्छ गर खराब हो नसीब
अपनों के होते मिलती तन्हाई
ऐसे वक़्त में कौन रहता करीब
दीपक कुल्लुवी
Wednesday 19 August 2009
दीपक 'कुल्लुवी' की कलम SE
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