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DEEPAK 'KULUVI' KI KALAM SE
Wednesday 14 July 2010
मेरी शेर-ओ-शायरी
तकदीर के खेल हैं अजीब-ओ-गरीब
लुट जाता सब कुच्छ गर खराब हो नसीब
अपनों के होते मिलती तन्हाई
ऐसे वक़्त में कौन रहता करीब
दीपक कुल्लुवी
1 comment:
Surendra shukla" Bhramar"5
18 July 2012 at 11:25
प्रिय दीपक जी सटीक बातें ...सब ऐसे वक्त में मुंह फेर चल देते हैं ...सुन्दर ..भ्रमर ५
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