Wednesday 14 July 2010

मेरी शेर-ओ-शायरी


तकदीर के खेल हैं अजीब-ओ-गरीब
लुट जाता सब कुच्छ गर खराब हो नसीब
अपनों के होते मिलती तन्हाई
ऐसे वक़्त में कौन रहता करीब

दीपक कुल्लुवी

1 comment:

  1. प्रिय दीपक जी सटीक बातें ...सब ऐसे वक्त में मुंह फेर चल देते हैं ...सुन्दर ..भ्रमर ५

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